
वॉशिंगटन — रूस–यूक्रेन युद्ध के लंबे खिंचने के साथ ही यूरोपीय सहयोगी देश अब आपातकालीन सैन्य सहायता से आगे बढ़कर यूक्रेन के साथ दीर्घकालिक रक्षा औद्योगिक साझेदारियों की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इस बदलाव के तहत वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन पर निर्भरता से दूर विविधीकृत करने की कोशिशें तेज हुई हैं, जिनमें भारत का नाम भी रणनीतिक चर्चा का हिस्सा बनकर उभरा है। यह बात यहां अधिकारियों और विशेषज्ञों ने कही।
गुरुवार को यूरोप में सुरक्षा और सहयोग पर अमेरिकी आयोग (US Commission on Security and Cooperation in Europe) के समक्ष गवाही देते हुए वक्ताओं ने “डेनिश मॉडल” को रेखांकित किया। यह मॉडल डेनमार्क द्वारा विकसित किया गया है, जिसके तहत विदेशी फंडिंग सीधे यूक्रेन के रक्षा उद्योग में लगाई जाती है, बजाय इसके कि केवल सैन्य भंडार से हथियार दान किए जाएं या तीसरे देशों से खरीदारी की जाए।
संयुक्त राज्य अमेरिका में डेनमार्क के रक्षा अताशे मेजर जनरल कार्स्टन एफ. जेनसन ने कहा, “डेनमार्क के दृष्टिकोण से, अपनी रक्षा को मजबूत करना और यूक्रेन का समर्थन करना एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं, बल्कि यूरोपीय रक्षा और सुरक्षा को सशक्त बनाने के लिए एक ही समाधान का हिस्सा हैं।”
जेनसन ने बताया कि इस मॉडल के तहत दानदाता युद्धक्षेत्र की जरूरतों के आधार पर सीधे यूक्रेनी निर्माताओं को फंडिंग कर सकते हैं। “इस मॉडल के जरिए डेनमार्क सीधे यूक्रेन के रक्षा उद्योग को सहायता देता है, न कि केवल तीसरे देशों से हथियार खरीदने या राष्ट्रीय भंडार से दान करने पर निर्भर रहता है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने बताया कि एक पायलट परियोजना के तहत जुलाई 2024 में ऑर्डर किए गए 18 तोपखाना सिस्टम सितंबर 2024 तक पूरी तरह युद्ध के लिए तैयार हो गए थे। डेनमार्क ने 2024 में इस मॉडल के माध्यम से लगभग 627 मिलियन डॉलर की सहायता दी, जो 2025 में बढ़कर करीब 2 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
यूरोपीय रक्षा नीति विशेषज्ञ सोफिया बेश ने कहा कि यूरोप अब संकट प्रबंधन से रणनीतिक दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, “जो पहल 2022 में प्रतिक्रियात्मक संकट उपायों के रूप में शुरू हुई थी, वह अब एक अधिक रणनीतिक ढांचे में विकसित हो रही है। एक सक्षम और पुनः सशस्त्र यूक्रेन यूरोप की पहली रक्षा पंक्ति है और रूस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।”
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) के वाधवानी एआई सेंटर की फेलो और यूक्रेनी सरकार की पूर्व सलाहकार कतेरीना बॉन्डार ने कहा कि यूक्रेन का रक्षा उद्योग तेजी से विस्तारित हुआ है, लेकिन उसे पर्याप्त फंडिंग की कमी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया, “यूक्रेन की वार्षिक रक्षा उत्पादन क्षमता 2022 में लगभग 1 अरब डॉलर से बढ़कर 2025 के मध्य तक 35 अरब डॉलर से अधिक हो गई है,” लेकिन 2024 की शुरुआत में कीव केवल 6 अरब डॉलर के उपकरण ही खरीद सका।
बॉन्डार ने कहा कि इस युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमजोरियों को उजागर किया है, खासकर चीन पर निर्भरता को लेकर। “रूस और यूक्रेन दोनों एक ही स्रोत से सामग्री ले रहे हैं,” उन्होंने कहा, खासतौर पर ड्रोन के लिए चीनी कंपोनेंट्स पर साझा निर्भरता की ओर इशारा करते हुए। उन्होंने बताया कि अब सोर्सिंग को विविध बनाने के प्रयास चल रहे हैं, “जिसमें भारत भी शामिल है।”
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि प्रतिद्वंद्वी देश इस संघर्ष से सबक ले रहे हैं। “चीन रूस से सीख रहा है,” बॉन्डार ने कहा, साथ ही यह भी जोड़ा कि “पुतिन हाल ही में भारत गए थे और उन्होंने भारत के साथ सैन्य सहयोग स्थापित किया है।”
गवाहों ने कहा कि यूक्रेन को लंबे समय तक समर्थन देने और किसी भी भविष्य की शांति को आकार देने में रक्षा औद्योगिक सहयोग की केंद्रीय भूमिका है। सोफिया बेश ने कहा, “औद्योगिक सहयोग किसी भी टिकाऊ शांति की नींव है,” और तर्क दिया कि विश्वसनीय प्रतिरोध के लिए बड़े पैमाने पर और पूर्वानुमेय उत्पादन क्षमता आवश्यक है।
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने नाटो सहयोगी देशों को रक्षा खर्च, औद्योगिक क्षमता और आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है, जबकि यूक्रेन को अब यूरोपीय रक्षा की अग्रिम पंक्ति के रूप में देखा जा रहा है।
With inputs from IANS