नई दिल्ली — पहली तिमाही (Q1FY26) के नतीजों की धीमी शुरुआत के बीच घरेलू शेयर बाजारों में लगातार तीसरे सप्ताह भी गिरावट जारी रही और प्रमुख सूचकांक निफ्टी 25,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे बंद हुआ। खासकर आईटी और वित्तीय क्षेत्रों की कमजोर कमाई ने बाजार पर दबाव डाला, ऐसा विश्लेषकों ने शनिवार को कहा।
वैश्विक मांग को लेकर अनिश्चितता के बीच आईटी क्षेत्र की सुस्त प्रदर्शन और सतर्क भविष्यवाणी ने इस क्षेत्र को कमजोर बनाए रखा। वहीं, वित्तीय क्षेत्र में भी नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) में गिरावट और एसेट क्वालिटी से जुड़ी चिंताओं के कारण कमज़ोर नतीजों की उम्मीद की जा रही है।
जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के रिसर्च प्रमुख विनोद नायर ने कहा, “इसके विपरीत एफएमसीजी शेयरों ने बेहतर प्रदर्शन किया, जो शहरी उपभोग में संभावित सुधार के संकेत देने वाले उत्साहजनक विकास अनुमान से समर्थित रहे। मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक समर्थन से मिलने वाली आय में तेजी निवेशकों को उपभोग आधारित शेयरों की ओर आकर्षित कर सकती है।”
शुक्रवार को, व्यापक बिकवाली दबाव के चलते भारतीय बेंचमार्क सूचकांक कमजोरी के साथ बंद हुए, जिसमें निफ्टी 25,000 के नीचे फिसल गया। सेंसेक्स 501.51 अंकों की गिरावट के साथ 0.61% नीचे 81,757.73 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 143.05 अंक या 0.57% टूटकर 24,968.40 पर बंद हुआ।
मीडिया और मेटल को छोड़कर बाकी सभी सेक्टोरल इंडेक्स लाल निशान में बंद हुए। विशेष रूप से फार्मा, प्राइवेट बैंक, पीएसयू बैंक, एफएमसीजी, कैपिटल गुड्स, कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स और टेलिकॉम सेक्टर्स में 0.5% से 1% तक की गिरावट रही।
मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी मुनाफावसूली देखने को मिली, जिससे निफ्टी मिडकैप में 0.7% और स्मॉलकैप में 0.8% की गिरावट दर्ज हुई।
बजाज ब्रोकिंग रिसर्च के अनुसार, आने वाला सप्ताह भारत और अमेरिका दोनों ओर से उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतकों से भरपूर रहेगा, जो विनिर्माण गतिविधियों, हाउसिंग सेक्टर और श्रम बाजार की स्थिति पर संकेत देंगे।
भारतीय मोर्चे पर, जुलाई महीने के लिए एसएंडपी ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई (प्रारंभिक) डेटा को प्रमुख माना जा रहा है। हाल के महीनों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में स्थिर विस्तार देखा गया है और निवेशक इसकी निरंतरता के संकेतों की तलाश करेंगे।
वैश्विक स्तर पर, बाजार अमेरिका-भारत के प्रस्तावित मिनी व्यापार समझौते की स्थिति पर नज़र बनाए हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह समझौता अनुकूल रूप से तय होता है तो यह भारत के निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों के लिए सकारात्मक संकेत देगा और उभरते बाजारों में भारत की स्थिति को और सुदृढ़ करेगा।
With inputs from IANS