बीमार बच्चा पीछे, सामने रणभूमि: राजपूत रेजिमेंट के सिपाही शकील ने देशभक्ति को चुनाBy Admin Fri, 09 May 2025 01:31 PM

कन्नौज (IANS): बलिदान, परंपरा और देशभक्ति की मिसाल पेश करते हुए राजपूत रेजिमेंट के हवलदार शकील अहमद ने यह साबित कर दिया कि सच्ची देशसेवा कैसी होती है। शकील अपने बीमार बच्चे के इलाज के लिए कन्नौज लौटे थे, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच उन्हें अचानक फिर से ड्यूटी पर बुला लिया गया।

यह तनाव ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद बढ़ा, जिसमें भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर नष्ट कर दिया था। शकील ने एक पल की भी देरी किए बिना अपने निजी दुःखों को किनारे रख दिया और देश की पुकार पर चल पड़े — यही जज़्बा है जो भारतीय सैनिकों को अद्वितीय बनाता है।

उन्होंने अपने परिवार और निजी चिंताओं को पीछे छोड़ दिया और एक बार फिर कश्मीर के संवेदनशील मोर्चे की ओर प्रस्थान किया। शकील कन्नौज के गुरसहायगंज तहसील के मझ पुरवा गांव के रहने वाले हैं — एक ऐसा गांव जो वर्षों से सेना को अपने सपूत देता आया है। यहां के कई लोग भारतीय सेना में सेवा कर चुके हैं।

उनके विदा होते समय गांव में भावनाएं उमड़ पड़ीं — लोगों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाए, सलामी दी, और उनकी सलामती की दुआएं मांगी।

इस विदाई को और अधिक विशेष बनाता है यह तथ्य कि शकील अकेले नहीं हैं जिन्होंने वर्दी पहनी है — उनके तीनों भाई भी भारतीय सेना में सेवा कर चुके हैं और सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त हुए हैं। देशसेवा उनके खून में है, और आज उनका पूरा परिवार गर्व से सर ऊंचा किए खड़ा है।

"यह हमारे लिए गर्व की बात है," शकील के बड़े भाई, सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर जावेद खान ने कहा।

"अगर सेना फिर से हमें बुलाएगी, तो हम दुश्मन को कुचलने के लिए लौटने को तैयार हैं।" युद्ध का अनुभव रखने वाले जावेद खान ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सोशल मीडिया के माध्यम से संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने हालात की गंभीरता को देखते हुए फिर से सेना में लौटने की इच्छा जताई।

यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक बयान नहीं था, बल्कि एक ऐसे परिवार की ओर से सच्चे दिल से आया प्रस्ताव था, जो देशसेवा को जीवन का सर्वोच्च कर्तव्य मानता है।

आईएएनएस से बातचीत में उन्होंने कहा, "देश के लिए जान देना ही सबसे बड़ा धर्म है।"

उन्होंने आगे कहा, "मैंने 1999 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ा था। युद्धभूमि में एक सैनिक के मन में केवल देश और कर्तव्य होते हैं — न कोई निजी चिंता, न परिवार की याद।"

ये शब्द भारतीय सेना की असली भावना को दर्शाते हैं — देश के लिए अडिग प्रेम, निःस्वार्थ सेवा और हर परिस्थिति में अटल समर्पण।