नौकरी की असुरक्षा, बच्चों की देखभाल की कमी और खराब स्वास्थ्य बढ़ते प्रजनन संकट के पीछे: UNFPA रिपोर्टBy Admin Tue, 10 June 2025 08:19 AM

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, नौकरी की असुरक्षा, भरोसेमंद बच्चों की देखभाल की कमी और खराब स्वास्थ्य बढ़ते प्रजनन संकट के मुख्य कारण हैं। यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई।

"स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन" (SOWP) रिपोर्ट में बताया गया है कि लाखों लोग अपनी वास्तविक प्रजनन इच्छाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं — यानी सेक्स, गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने के बारे में स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। रिपोर्ट में घटती प्रजनन दर को लेकर घबराहट की बजाय अपूर्ण प्रजनन इच्छाओं को समझने और समाधान निकालने की जरूरत पर जोर दिया गया है।

UNFPA-YouGov द्वारा 14 देशों में किए गए सर्वे (जिसमें भारत भी शामिल है) में कुल 14,000 प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाएं ली गईं। इस सर्वे ने भारत में प्रजनन स्वतंत्रता में मौजूद कई बाधाओं को उजागर किया।

रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक समस्याएं (40%) प्रजनन स्वतंत्रता की सबसे बड़ी बाधा हैं। इसके बाद नौकरी की असुरक्षा (21%), रहने की जगह की कमी (22%), और भरोसेमंद बच्चों की देखभाल की सुविधा की कमी (18%) जैसे कारण लोगों को माता-पिता बनने से रोक रहे हैं।

इसके अलावा, खराब सामान्य स्वास्थ्य (15%), बांझपन (13%), और गर्भावस्था से जुड़ी देखभाल की सीमित उपलब्धता (14%) जैसे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे इस बोझ को और बढ़ा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक-सामाजिक अस्थिरता भी भविष्य को लेकर चिंता बढ़ा रहे हैं, जिससे लोग परिवार बढ़ाने के फैसले से हिचक रहे हैं। लगभग 19% लोगों पर उनके साथी या परिवार द्वारा अपेक्षा से कम बच्चे पैदा करने का दबाव था।

UNFPA इंडिया की प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा,
"भारत ने प्रजनन दर घटाने में उल्लेखनीय प्रगति की है — 1970 में प्रति महिला औसतन पांच बच्चों से घटकर आज लगभग दो बच्चे हो गए हैं — यह शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर उपलब्धता की वजह से संभव हो पाया है।"

उन्होंने आगे कहा,
"इसके चलते मातृ मृत्यु दर में भी भारी कमी आई है, जिससे लाखों माताएं आज जीवित हैं और बच्चों का पालन-पोषण कर रहीं हैं। हालांकि, अब भी राज्यों, जातियों और आय वर्गों में गहरी असमानताएं बनी हुई हैं।"

हालांकि भारत ने प्रजनन स्वास्थ्य में प्रगति की है, रिपोर्ट में राज्यवार असमानताओं को भी रेखांकित किया गया है।

रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आज भी प्रजनन दर उच्च है, जबकि दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह दर प्रतिस्थापन स्तर से भी कम है।
यह विरोधाभास आर्थिक अवसरों, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, शिक्षा स्तर और लिंग तथा सामाजिक मान्यताओं में अंतर को दर्शाता है।

वोजनार ने कहा,
"वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभ तब आता है जब हर व्यक्ति को स्वतंत्र और सूचित प्रजनन निर्णय लेने की आज़ादी और संसाधन मिलते हैं। भारत के पास यह दिखाने का अनोखा अवसर है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।"

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि असली संकट जनसंख्या की संख्या में नहीं, बल्कि इस बात में है कि लोगों को स्वतंत्र रूप से यह निर्णय लेने में कितनी चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं कि वे कब, कैसे और कितने बच्चे चाहते हैं।

इसने सुझाव दिया कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, मातृत्व और बांझपन से जुड़ी देखभाल की सार्वभौमिक उपलब्धता, और संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने के लिए बाल देखभाल, शिक्षा, आवास और कार्यस्थल में लचीलापन जैसी व्यवस्थाओं में निवेश करना आवश्यक है। साथ ही, समावेशी नीतियों को बढ़ावा देना भी जरूरी है।

 

With inputs from IANS