नई दिल्ली (IANS): बच्चों को मारना या शारीरिक दंड देना उनके स्वास्थ्य, शैक्षणिक प्रदर्शन और सामाजिक-भावनात्मक विकास पर गंभीर नकारात्मक असर डाल सकता है। यह बात एक हालिया अध्ययन में सामने आई है, जिसे प्रतिष्ठित नेचर ह्यूमन बिहेवियर जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
अमेरिका स्थित न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी-स्टाइनहार्ट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस विश्लेषण में यह स्पष्ट किया गया है कि शारीरिक दंड बच्चों और किशोरों के लिए हर दृष्टि से हानिकारक है। अध्ययन के अनुसार, शारीरिक दंड से माता-पिता और बच्चों के संबंधों में गिरावट, स्वास्थ्य समस्याएं, मानसिक तनाव, नशे की लत, शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट, भाषा कौशल और सामाजिक-भावनात्मक विकास में बाधा, सोने की गुणवत्ता में कमी, आक्रामक व्यवहार, और डिप्रेशन व आत्म-एकांत जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।
इसके अलावा, ऐसे बच्चों में आगे चलकर घरेलू हिंसा करने या उसका शिकार बनने की संभावना, हिंसक प्रवृत्तियों को स्वीकार करना, और बाल श्रमिक बनने का जोखिम भी बढ़ जाता है।
इस अध्ययन में 2002 से 2024 के बीच प्रकाशित 195 शोधों का विश्लेषण किया गया, जिनमें 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों को शामिल किया गया। यह अध्ययन बच्चों पर शारीरिक दंड के प्रभावों पर अब तक का सबसे व्यापक और वैश्विक विश्लेषण माना जा रहा है।
प्रमुख लेखक और एनवाईयू में एप्लाइड साइकोलॉजी के सहायक प्रोफेसर जॉर्ज कुआर्तास ने कहा, "इन निष्कर्षों की स्थिरता और तीव्रता यह दर्शाती है कि शारीरिक दंड बच्चों के लिए सर्वत्र हानिकारक है। हमें वैश्विक स्तर पर शारीरिक दंड को रोकने के लिए प्रभावी रणनीतियों की आवश्यकता है, जिससे बच्चों को सभी प्रकार की हिंसा से बचाया जा सके और उनके समुचित विकास को सुनिश्चित किया जा सके।"
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने 2006 में बच्चों पर शारीरिक दंड पर पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश की थी, जिसमें थप्पड़ मारना, झिंझोड़ना या पिटाई शामिल है। अब तक दुनिया के 65 देशों में पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं, जिनमें अधिकतर उच्च आय वर्ग के देश शामिल हैं।