धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से मियाद के बीच दिया इस्तीफा — संविधानिक मोड़ पर एक अहम पड़ावBy Admin Tue, 22 July 2025 06:44 AM

नई दिल्ली — जगदीप धनखड़ का कार्यकाल के बीच में उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना उन्हें एक दुर्लभ संवैधानिक वर्ग में शामिल करता है। वह केवल तीसरे ऐसे उपराष्ट्रपति बने हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले पद त्याग दिया है।

हालांकि आधिकारिक तौर पर उनके इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य संबंधी कारण बताई गई है, लेकिन यह फैसला मानसून सत्र के दौरान और उनके राजनीतिक रूप से मुखर कार्यकाल के बीच आया है, जिससे इसे लेकर राजनीतिक और संस्थागत चर्चाएं तेज हो गई हैं।

इतिहास में इससे पहले वी.वी. गिरि और आर. वेंकटरमण ने भी इस्तीफा दिया था, लेकिन उनका त्यागपत्र राष्ट्रपति बनने की प्रक्रिया का हिस्सा था, जो एक स्पष्ट राजनीतिक परिवर्तन को दर्शाता था।

लेकिन धनखड़ का इस्तीफा किसी पदोन्नति के संकेत के बजाय एक पूर्ण विराम जैसा प्रतीत होता है। उनकी इस विदाई ने राज्यसभा में उत्तराधिकार और नेतृत्व निरंतरता को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

संविधान में उपराष्ट्रपति का कार्यकारी या विधायी शक्ति से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, लेकिन उनका प्रतीकात्मक और प्रक्रियात्मक प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण होता है। राज्यसभा के पदेन सभापति के तौर पर धनखड़ ने कई महत्वपूर्ण बहसों की अध्यक्षता की, और कई बार सत्तारूढ़ दल की मुखर शैली भी उनके आचरण में दिखाई दी। उनके अचानक हटने से संसद के उच्च सदन में अनुभवी संचालनकर्ता की कमी हो गई है, वो भी ऐसे समय में जब सरकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है।

फिलहाल उपसभापति कार्यवाहक रूप से सभापति का दायित्व निभाएंगे, लेकिन निर्वाचित उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति से संसद की कार्यवाही की गति और संतुलन प्रभावित हो सकता है।

राजनीतिक दृष्टिकोण से भी धनखड़ का यह बीच में दिया गया इस्तीफा पुनर्मूल्यांकन की मांग करता है। अब चुनाव आयोग को एक नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करनी होगी, जो पूर्ण पांच वर्षीय कार्यकाल के लिए चुना जाएगा। यह चुनाव न केवल रणनीतिक बल्कि प्रतीकात्मक दृष्टिकोण से भी अहम होगा, क्योंकि यह 2026 के आम चुनावों से पहले राज्यसभा की कार्यशैली और राजनीति की दिशा तय करेगा।

इस प्रकार, धनखड़ का इस्तीफा केवल एक संवैधानिक टिप्पणी नहीं, बल्कि भारत की विधायी यात्रा में एक विशेष विराम बन गया है, जो प्रोटोकॉल, व्यक्तित्व और राजनीतिक प्रदर्शन के बीच गहरे आत्ममंथन और पुनर्चिंतन का अवसर देता है।

 

With inputs from IANS