हीमोफीलिया बी के लिए जीन थेरेपी लंबे समय तक सुरक्षित और प्रभावी: अध्ययनBy Admin Sat, 14 June 2025 02:58 AM

नई दिल्ली — ब्रिटेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, खून बहने की दुर्लभ बीमारी हीमोफीलिया बी के इलाज के लिए जीन ट्रांसफर पद्धति लंबे समय तक सुरक्षित और प्रभावी साबित हुई है।

हीमोफीलिया बी एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है, जो रक्त में फैक्टर IX नामक प्रोटीन की कमी के कारण होता है। यह प्रोटीन रक्त के थक्के बनने में मदद करता है।

सेंट जूड चिल्ड्रन्स रिसर्च हॉस्पिटल और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने इस रोग के इलाज के लिए एक बार की जीन थेरेपी का प्रयोग किया। यह अध्ययन 13 वर्षों के फॉलोअप डेटा पर आधारित है और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में रोगियों के सालाना रक्तस्राव की दर में लगभग 10 गुना कमी पाई गई।

सर्जरी विभाग के अध्यक्ष एंड्रयू डेविडॉफ के अनुसार, “जीन थेरेपी का मुख्य लाभ यह है कि यह एक बार दी जाने वाली साधारण नसों के जरिए दी जाने वाली दवा है, जो जीवनभर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।”

हीमोफीलिया बी एक एक्स-लिंक्ड आनुवंशिक विकार है, जो लगभग हर 25,000 पुरुष जन्मों में से एक को प्रभावित करता है। इस बीमारी में बार-बार स्वतः खून बहना और जीवन के लिए खतरनाक रक्तस्राव की संभावना होती है।

अब तक, इस बीमारी का इलाज जीवनभर फैक्टर IX की पूर्ति पर निर्भर करता था, जो बेहद महंगा होता है। लेकिन जीन थेरेपी इस बीमारी के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।

अध्ययन में मार्च 2010 से नवंबर 2012 के बीच गंभीर हीमोफीलिया बी से पीड़ित 10 वयस्कों को जीन थेरेपी दवा दी गई। 2014 में इसकी प्रारंभिक सफलता के बाद, मरीजों पर 10 वर्षों तक निगरानी रखी गई, और सभी ने स्थायी रूप से फैक्टर IX के स्तर में स्थिरता और खून बहने से राहत पाई।

जीन थेरेपी के क्षेत्र में लंबे समय तक प्रभावी रहने को लेकर संदेह था, लेकिन यह अध्ययन बताता है कि 13 वर्षों तक मरीजों में कोई नकारात्मक असर नहीं देखा गया है।

मुख्य अन्वेषक उलरीके रीस ने बताया, “इन 10 मरीजों में फैक्टर IX के स्तर स्थिर हैं और पूरे 13 वर्षों में कोई गिरावट नहीं आई। साथ ही, कोई दीर्घकालिक दुष्प्रभाव भी सामने नहीं आया है।”

टीम ने बताया कि दवा देने के बाद 90% जीन थेरेपी लीवर में पहुंचती है। हालांकि शुरू में थोड़ी लीवर सूजन देखी गई थी, लेकिन स्टेरॉयड के माध्यम से उसे नियंत्रित कर लिया गया और वह फिर कभी नहीं लौटी।

 

With inputs from IANS