नई दिल्ली- भारत के पहले अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) जाने वाले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने गुरुवार को भारत के छात्रों से संवाद किया। इस दौरान छात्रों ने उनसे मज़ेदार सवाल किए — अंतरिक्ष में खाना क्या मिलता है, वहां सोते कैसे हैं और अगर कोई बीमार पड़ जाए तो क्या होता है?
छात्रों ने यह भी जानना चाहा कि अंतरिक्ष मिशन का फायदा क्या है और स्पेस में बिताया गया सबसे मज़ेदार पल कौन-सा होता है।
बातचीत के दौरान शुक्ला ने एक्सियोम मिशन-4 के लॉन्च अनुभव को "अद्भुत" और "जोश से भरा" बताया।
उन्होंने कहा, "असल में यह बहुत मज़ेदार होता है, क्योंकि अंतरिक्ष में न ज़मीन होती है न छत। अगर आप स्पेस स्टेशन (ISS) पर आते, तो कोई दीवार पर सोता दिखता, कोई छत पर।"
जब छात्रों ने पूछा कि अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं, तो लखनऊ में जन्मे शुक्ला ने बताया कि ज्यादातर खाना पहले से पैक होता है और पोषण का पूरा ध्यान रखा जाता है।
उन्होंने कहा, "अलग-अलग खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। अंतरिक्ष यात्री उन्हें चखते हैं और जो पसंद आता है, वही पैक कर दिया जाता है।"
एक छात्र ने पूछा कि अगर कोई अंतरिक्ष में बीमार पड़ जाए तो क्या होता है? इस पर शुक्ला ने मुस्कराते हुए कहा, "यहां तो इतनी आसानी से हवा में तैर सकते हैं और खुद को छत से बांध सकते हैं। असली चुनौती ये है कि आप सुबह वहीं मिलें जहां रात को सोए थे। इसलिए हम सोने के समय अपने स्लीपिंग बैग्स को बांधकर रखते हैं, ताकि कहीं और न बहक जाएं।"
जब मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल आया, तो शुक्ला ने बताया कि आजकल की तकनीक की मदद से अंतरिक्ष यात्री अपने परिवार और दोस्तों से संपर्क में रहते हैं। उन्होंने कहा, "इससे बहुत मदद मिलती है।"
उन्होंने यह भी समझाया कि वजनहीन वातावरण में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है और शरीर में तरल पदार्थों के स्थानांतरण से पाचन पर असर पड़ता है।
उन्होंने कहा, "अब मेरा शरीर माइक्रोग्रैविटी के मुताबिक ढल गया है, लेकिन जब मैं धरती पर लौटूंगा, तब शरीर को फिर से गुरुत्वाकर्षण के अनुसार ढलना पड़ेगा। यह फिर से एक बड़ी चुनौती होगी।"
इस बीच, नासा ने बताया कि शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष प्रयोगशाला में ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस विकसित करने पर काम कर रहे हैं।
वह Axiom-4 मिशन के तहत अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर 14 दिवसीय वैज्ञानिक अभियान पर हैं।
इस अभियान में क्रू टीम 31 देशों के प्रतिनिधित्व में माइक्रोग्रैविटी में करीब 60 वैज्ञानिक प्रयोग और व्यावसायिक गतिविधियां कर रही है। इसमें अमेरिका, भारत, पोलैंड, हंगरी, सऊदी अरब, ब्राज़ील, नाइजीरिया, यूएई समेत कई यूरोपीय देश शामिल हैं।
भारत ने इस मिशन में इसरो (ISRO) के माध्यम से सात खास वैज्ञानिक अध्ययनों का योगदान दिया है।
With inputs from IANS