अमरावती- आंध्र प्रदेश के नगर प्रशासन एवं शहरी विकास विभाग (MAUD) मच्छर जनित बीमारियों पर नियंत्रण के लिए गहराई तकनीक (Deep Technology) का उपयोग करते हुए एक केंद्रित "स्मार्ट मच्छर नियंत्रण" कार्यक्रम शुरू करने जा रहा है।
विभाग ने रविवार को बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से संचालित स्मार्ट मच्छर निगरानी प्रणाली (SMoSS) पायलट प्रोजेक्ट के तहत राज्य के छह प्रमुख नगर निगमों के 66 स्थानों पर लागू की जाएगी।
SMoSS का मुख्य उद्देश्य खतरनाक मच्छर जनित बीमारियों से जनता की सुरक्षा करना है, साथ ही यह कार्यक्रम नगर निकायों पर परिचालन का बोझ कम करेगा और खर्च में भी कटौती करेगा।
इस कार्यक्रम की निगरानी अत्याधुनिक इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) तकनीक, ड्रोन, सेंसर, हीट मैप्स और ट्रैप्स की मदद से की जाएगी।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत जल्द ही ग्रेटर विशाखापट्टनम नगर निगम में 16, काकीनाडा में 4, राजमहेंद्रवरम में 5, विजयवाड़ा में 28, नेल्लोर में 7 और कुरनूल में 6 स्थानों पर यह योजना शुरू होगी।
MAUD के प्रधान सचिव एस. सुरेश कुमार और नगर प्रशासन निदेशक पी. संपत कुमार ने हाल ही में निजी एजेंसी द्वारा विकसित एआई आधारित SMoSS की कार्यक्षमता का आकलन किया।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत चयनित नगर निकायों के प्रमुख मच्छर प्रभावित क्षेत्रों में स्मार्ट मच्छर सेंसर लगाए जाएंगे।
ये सेंसर मच्छरों की प्रजाति, लिंग, घनत्व, तापमान और नमी की जानकारी देंगे। किसी भी क्षेत्र में मच्छरों की संख्या तय सीमा से अधिक होने पर स्वचालित अलर्ट जारी होंगे। यह डेटा लगातार केंद्रीय सर्वर पर भेजा जाएगा और रियल टाइम डैशबोर्ड पर देखा जा सकेगा।
"इस तकनीक से मच्छरों की प्रभावी रोकथाम के लिए डेटा आधारित सटीक कार्रवाई संभव होगी, जबकि अभी की अंधाधुंध स्प्रे प्रक्रिया का बहुत कम असर होता है। IoT सेंसर मच्छरों के घनत्व की निगरानी करेंगे और लक्षित कार्रवाई में मदद करेंगे," एक अधिकारी ने बताया।
ड्रोन से लार्विसाइड का छिड़काव करने से कम रसायन, समय और लागत में बड़े क्षेत्रों को कवर किया जा सकेगा।
सबूत आधारित छिड़काव, रसायनों के अत्यधिक उपयोग पर रोक और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा इस पूरे अभियान के मुख्य उद्देश्य हैं।
अधिकारियों ने बताया, "इस पूरे कार्यक्रम का संचालन हम विशेष एजेंसियों को आउटसोर्स करेंगे, भुगतान केवल नतीजों के आधार पर किया जाएगा। नागरिकों और फील्ड स्टाफ से मिली शिकायतें मोबाइल एप्स (वेक्टर कंट्रोल और पुरमित्रा) के जरिए ट्रैक की जाएंगी।"
इसके अलावा, अस्पतालों से रोजाना मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे मामलों की रिपोर्टिंग की व्यवस्था की जा रही है। इस डेटा के आधार पर मच्छर प्रभावित हॉटस्पॉट चिन्हित कर वहां केंद्रित कार्रवाई की जाएगी।
हॉटस्पॉट क्षेत्रों में नियमित फॉगिंग और लार्वा उपचार के लिए विशेष कार्य योजनाएं तैयार की जा रही हैं, अधिकारियों ने बताया।
With inputs from IANS