भारतीय खगोलविदों ने सूर्य के कोरोना में खोजे छोटे लूप्स, सुलझा सकते हैं सूर्य की छिपी विस्फोटक पहेलियांBy Admin Tue, 08 July 2025 07:03 AM

नई दिल्ली — विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के खगोलविदों ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए सूर्य के कोरोना (बाहरी परत) में छिपे सूक्ष्म प्लाज़्मा लूप्स की खोज की है, जो सूर्य की गहरी रहस्यमयी गतिविधियों को समझने में मदद कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार, ये लूप्स आकार में बेहद छोटे और जीवनकाल में अत्यंत अल्पकालिक होते हैं, जिसके कारण अब तक ये हमारी नजरों से छिपे हुए थे। परंतु ये यह समझाने की कुंजी हो सकते हैं कि सूर्य अपनी चुंबकीय ऊर्जा को कैसे संग्रहित करता है और उसे अचानक कैसे छोड़ता है।

कोरोनल लूप्स सूर्य की ऊपरी परत में पाए जाने वाले चाप के आकार के चमकते हुए प्लाज़्मा संरचनाएं होती हैं, जिनका तापमान दस लाख डिग्री सेल्सियस से भी अधिक होता है।

इनके सूक्ष्म संस्करण लगभग 3,000 से 4,000 किलोमीटर लंबे होते हैं (जितनी दूरी कश्मीर से कन्याकुमारी तक है), लेकिन इनकी चौड़ाई 100 किलोमीटर से भी कम होती है, जिससे इनका अध्ययन अत्यंत कठिन हो जाता है। ये सूर्य के निचले वायुमंडलीय स्तरों में छिपे होते हैं और पूर्ववर्ती टेलीस्कोप्स से ठीक से देखे नहीं जा सके थे।

इन रहस्यमय संरचनाओं को पकड़ने के लिए IIA के खगोलविदों ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकों का इस्तेमाल किया।

IIA की डॉक्टोरल स्कॉलर अन्नु बुरा ने कहा,
"ये छोटे लूप्स बहुत तेज़ी से बनते हैं और कुछ ही मिनटों में समाप्त हो जाते हैं, जिससे इन्हें देखना और इनके स्रोतों को समझना बेहद मुश्किल होता है।"

उन्होंने आगे बताया,
"हालांकि ये आकार में छोटे हैं, लेकिन सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा की प्रक्रिया को समझने में इनका योगदान बहुत बड़ा है। ये सूर्य के वायुमंडल में ऊर्जा संचयन और विसर्जन के छोटे स्तर पर होने वाले घटनाक्रमों की नई झलक पेश करते हैं।"

यह अध्ययन ‘द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल’ में प्रकाशित हुआ है। इसमें वैज्ञानिकों ने कई अत्याधुनिक टेलीस्कोप्स का उपयोग किया —

  • Goode Solar Telescope (BBSO)

  • NASA का IRIS (Interface Region Imaging Spectrograph)

  • Solar Dynamics Observatory (SDO)

इन उपकरणों से प्राप्त आंकड़ों को जोड़कर सूर्य के विभिन्न परतों — क्रोमोस्फीयर, ट्रांजिशन रीजन और कोरोना — में इन लूप्स का आकलन किया गया।

अन्नु बुरा ने बताया,
"हमारी मल्टी-इंस्ट्रूमेंट ऑब्जर्वेशन तकनीक ने हमें दृश्यमान प्रकाश के साथ-साथ पराबैंगनी (UV) और अत्यंत पराबैंगनी (EUV) तरंगदैर्ध्य में भी इन लूप्स को देखने का अवसर दिया।"

सूर्य के क्रोमोस्फीयर की जांच के लिए हाइड्रोजन परमाणु की H-alpha स्पेक्ट्रल लाइन अहम भूमिका निभाती है।

टीम ने पाया कि इस रेखा के अधिक लाल हिस्से (लॉन्गर वेवलेंथ) में ये लूप्स कोमल और चमकते चापों के रूप में पहली बार स्पष्ट रूप से दिखाई दिए, जो कि कोरोनल लूप्स से मिलते-जुलते हैं।

इन लूप्स के अंदर के प्लाज़्मा के तापमान को मापने के लिए टीम ने Differential Emission Measure (DEM) नामक उन्नत तकनीक का प्रयोग किया।

परिणामों में पता चला कि इन लूप्स का प्लाज़्मा तापमान कई मिलियन डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, जो इन्हें Extreme Ultraviolet में चमकने के लिए पर्याप्त है — जैसा कि SDO के Atmospheric Imaging Assembly में देखा गया।

शोधकर्ताओं के अनुसार, लद्दाख स्थित पेंगोंग झील के पास प्रस्तावित 2-मीटर एपरचर वाला ‘नेशनल लार्ज सोलर टेलीस्कोप (NLST)’ भविष्य में इन छोटे लेकिन महत्वपूर्ण सौर रहस्यों को और गहराई से उजागर कर सकता है।

 

With inputs from IANS